Sunday, July 13, 2025

32.2 C
Delhi
Sunday, July 13, 2025

Homeप्रदेशमुनि निष्पक्षसागर व निस्पृहसागर महाराज के सानिध्य में मनाया गया गुरु पूर्णिमा...

मुनि निष्पक्षसागर व निस्पृहसागर महाराज के सानिध्य में मनाया गया गुरु पूर्णिमा महोत्सव

भवानीमंडी



आचार्य छत्तीसी मंडल विधान पूजन का हुआ आयोजन

भवानीमंडी के मेड़तवाल परिसर में मुनिद्वय 108 निष्पक्ष सागर महाराज व निस्पृहसागर महाराज के सानिध्य में गुरुवार को गुरु पूर्णिमा महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर आचार्य छत्तीसी मंडल विधान पूजन का भी आयोजन किया गया। दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष विजय जैन जूली, विशाल सांवला व अर्पित जैन सेवालय ने बताया कि इस अवसर पर 54 जोड़े जिसमे सभी महिलाएं केसरिया साड़ी पहने व पुरुषो ने शुद्ध धोती दुपट्टे पहने हुए पूजन में भाग लिया। मुनिद्वय के द्वारा गुरु पूर्णिमा के दिन आचार्य विद्यासागर महाराज व आचार्य समयसागर महाराज की विशेष पूजा अर्चना की गई। जिसमें सौधर्म इंद्र का लाभ कमल सांवला, यज्ञनायक राजेश सांवला, प्रथम अभिषेककर्ता अविनाश जैन परिवार, विजय जैन जूली परिवार, कमल सांवला परिवार, प्रदीप काला परिवार, शांति धारा कर्ता आलोक जैन परिवार, वीरेंद्र जैन रटलाई वाले, शास्त्र भेंटकर्ता विजय जैन जूली परिवार, नितेश जैन परिवार व पाद प्रक्षालन का लाभ यात्रा संघ देवास ने लाभ लिया। इस अवसर पर देवास से भी बड़ी संख्या में गुरुभक्त दर्शन लाभ हेतु पधारे।


शिष्य के जीवन में गुरु की उपलब्धि ही गुरु पूर्णिमा हुआ करती है : मुनि निष्पक्षसागर महाराज

मुनि निष्पक्ष सागर महाराज ने अपनी मंगल देशना मे बताया कि  गुरु पूर्णिमा का पर्व जैन संस्कृति का अद्भुत पर्व है। आगम के अनुसार जब भगवान केवलज्ञान प्राप्त होकर समवशरण को धारण करते हैं तब दिव्यध्वनि खिरती है। आज ही के दिन इंद्रभूति आदि तीन भाइयों ने अपने 1500 शिष्यों के साथ भगवान महावीर स्वामी को गुरु के रूप में प्राप्त किया था। उन्हें गुरु चरण के साथ गुरु आचरण भी मिला था। किसी भी शिष्य के जीवन में गुरु के होने से ही समर्पण व शिष्यत्व का भाव आता है। शिष्य के जीवन में गुरु की उपलब्धि ही गुरु पूर्णिमा हुआ करती है। श्रेष्ठ गुरु बड़ी दुर्लभता से मिलते हैं। जब भक्ति से भगवान के समक्ष सर झुकाया जाता है तो भगवान के समक्ष आपकी भावना स्वीकार कर ली जाती है। हमारी दिशा व दशा यदि कोई सुधार सकता है तो वह केवल गुरु होते हैं। जैसे मां सब कुछ समझती है वैसे ही गुरु भी सब कुछ होते हैं व समझते हैं। गुरु किसी को भी लघु से प्रभु बना सकते हैं। गुरु शब्द स्वयं में परिपूर्ण है।


जिसमें संपूर्ण विश्व समाहित हो जाए वही गुरु होता है : मुनि निस्पृहसागर महाराज

मुनि निस्पृहसागर महाराज ने बताया कि हमारे लौकिक जीवन में गुरु हमें बहुत कुछ सिखाते हैं, कुछ शैक्षणिक गुरु होते हैं कुछ राजनीतिक गुरु होते हैं वह हमें अनुभव भी देते हैं ज्ञान भी देते हैं। जब हमारे जीवन में पूर्ण तिथि अर्थात गुरु आते है तब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, इस दिन गुरु हमें पूर्ण कर देते हैं। जीवन में सब कुछ होने के बावजूद हमें एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है जिनके माध्यम से लक्षण व सिद्धांतों को पालन कर सके। आध्यात्मिक व अलौकिक क्षेत्र में हम लक्षणों के आधार पर ही गुरु मानते हैं। गौतम गणधर से आचार्य कुंदकुंद तक व आचार्य कुंदकुंद से आचार्य विद्यासागर महाराज तक इन सभी ने अपने जीवन में इस तरह से गुरु के लक्षण व स्वभाव को इस स्वीकार किया है और अपने आचरण रूप में धारण किया है। साथ ही बताया कि निग्रंथता अंदर व बाहर दोनों से जरूरी है इसके साथ ही सभी के कल्याण की भावना उसमें निहित हो वह गुरु होते हैं। गुरु जब शिष्य को अपना लेते हैं तो वह शिष्य भय से मुक्त हो जाता है। नाम के गुरु नहीं होते गुरु तो काम के होते हैं, जिसमें संपूर्ण विश्व समाहित हो जाए वही गुरु होता है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!
Enable Notifications Subscribe No thanks