जितेन्द्र पंवार ।
डग, झालावाड़

26 फरवरी बुधवार को महाशिवरात्रि पर्व पर कस्बे एवं क्षेत्र के समस्त शिवालयों में भव्य आयोजन होंगे जिसके तहत शिवालयों में अभिषेक, पूजा अर्चना एवं भजन संध्याओं का आयोजन होगा ।कायावर्णेश्वर महादेव को महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व हल्दी लगाकर महाशिवरात्रि पर्व की शुरुआत की जाती हैं इस दौरान स्थानीय क्यासरा ग्राम की महिलाओं ने देशी भाषा में गीत गाकर महादेव को हल्दी लगाई तथा एक दूसरे के भी हल्दी लगाकर मंगल गीत गाए। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर कायावर्णेश्वर महादेव का फूलों से रमणीक श्रृंगार किया गया,भक्तों ने लगाए बम बम भोले के जयघोष, क्यासरा क्षेत्र पूरा भक्ति के रंग में सराबोर नजर आया, शाम से विद्युत सजावट की चकाचौंध से पूरा मंदिर चकाचौंध रहा ।
*लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर*

क्षेत्र का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर राजस्थान के झालावाड़ जिले की डग तहसील से 8 किलोमीटर उत्तर में डग सुकेत मेगा हाइवे पर क्यासरा गांव में ओम आकार में स्थित छत्रसाल व बेरीसाल नामक हरी-भरी सुरम्य पहाड़ियों के बीच स्थित है। यह तीर्थ प्रत्येक तीर्थ यात्री का मन मोह लेता है। यात्री यहाँ आते ही भगवान भोले की शरण में श्रद्धालीन हो जाते है भगवान शिव के इस पावन धाम को कायावर्णेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

*लगभग 5000 वर्ष पुराना महाभारत कालीन हैं मंदिर*
इस पौराणिक धाम के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार महाभारत काल की समाप्ति के पश्चात् अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को राज्य का भार सौंपकर मोक्ष प्राप्त कर हिमालय के मार्ग से स्वर्ग चले गये थे। राजा परीक्षित के कार्यकाल में कलियुग ने प्रवेश किया। एक बार राजा परीक्षित मृग के शिकार हेतु वन में गये वहाँ प्रमादवश राजा ने श्रृंगी ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। ऋषि के पुत्र को जब इस घटना का पता चला तो उन्होंने क्रुद्ध होकर राजा परीक्षित को श्राप दिया कि सात दिन में तक्षक नामक नागराज डसेगा। ऋषि के पुत्र के श्राप के अनुसार महाराज परीक्षित तक्षक के डसने से मृत्यु को प्राप्त हुए। उनके पुत्र जन्मजेय ने अपने पिता की मृत्यु से क्षुब्ध होकर नागयज्ञ कराया जिसमे निर्दोष नागों एवं ब्रह्महत्या के पाप के फलस्वरूप राजा जनमेजय कुष्ठरोग से ग्रसित हो गए इस दौरान क्षेत्र में शिकार खेलने आए तभी छत्रसाल पर्वत के वन में एक श्वेत श्याम वराह को तीर से घायल कर दिया घायल वराह पर्वत की तलहटी में स्थित निर्मल जल के कुंड में गिर पड़ा। ज्यों ही वराह कुंड से बाहर आया, उस कुंड के पावन जल से वराह का रंग श्याम वर्णिय हो गया तथा वराह का शरीर निरोग होकर अदृश्य हो गया। इस दृश्य को देखकर राजा के मन में इस स्थान के प्रति अपार श्रद्धा जागृत हुई तथा श्रद्धापूर्वक उसने नाक बंद करके कुंड में स्नान किया, जिससे उसके नाक वाले भाग को छोड़कर सारा शरीर रोग रहित पूर्ण स्वस्थ एवं दैदिप्तमान हो गया। जिसपर उसने जल का शोध किया एवं कुंड से भगवान भोलनाथ का अंगुष्ठ प्रमाण का शिवलिंग मिलता है। राजा ने कुंड के निकट ही शिवलिंग की विधी विधान से स्थापना की तथा मंदाकिनी कुंड को बनाया तथा शास्त्र विधी से प्राण प्रतिष्ठा की। यह घटना आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व की है। इस स्थान पर राजा जन्मजेय के कुष्ठ रोग दूर होने तथा काया का वर्ण परिवर्तित होने से कायावर्णेश्वर नाम पड़ा। यह महान शिवलिंग प्रतिवर्ष तिल के बराबर वृद्धि करता है। इस कुंड में स्नान करके यात्री दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति पाते हैं। इसी स्थान पर दो व्यक्तियों ने सन् 1832 एवं सन् 1916 में अपने शीश कमल (मस्तक) भगवान शिव को अर्पित किए।

समय- समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है।
झाला वंश के महाराजा स्व. श्री राजेन्द्रसिंहजी ने 1943 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया तथा यात्रियों के ठहरने के लिये धर्मशाला बनवाई।
भानपुरा पीठ के पूर्व शंकराचार्य एवं भारतमाता मंदिर के संस्थापक श्री श्री 1008 श्री महामंडलेश्वर स्वामी श्री सत्यमित्रानन्दजी गिरी जी की अध्यक्षता में सन् 1987 में अन्नक्षेत्र का शुभारंभ हुआ जो वर्तमान तक जारी है। सन् 1992 में इसी पावन धाम पर विशाल लक्षचंडी यज्ञ उच्चकोटी के संत महात्माओं के सानिध्य में एवं विशाल जनसमुदाय की श्रद्धाधारा में सम्पन्न हुआ।
कायावर्णेश्वर महादेव के मंदिर के समीप ही एक भव्य दुर्गा मंदिर का निर्माण हुआ 24 अप्रेल 1999 में नवदुर्गा मंदिर की प्राण प्रतिमा एवं चंडी महायज्ञ सम्पन्न हुआ। भगवान शिव एवं शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा के पावन धाम में 13 अक्टूबर 2000 से वैदिक वेद विद्यालय का शुभारंभ किया गया. इसमें धर्म शिक्षार्थियों को वैदिक शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है। यहाँ शिक्षार्थियों को नि:शुल्क आवास, वस्त्र एवं भोजन की व्यवस्था की गई है। इस मंदिर के पूर्व में पहाड़ी पर हनुमानजी की विशाल प्रतिमा एक ही पाषाण पर बनी हुई है। मंदिर के समीप ही श्री गणेशजी का मंदिर भी स्थित है। इस क्षेत्र के आसपास कई पौराणिक एवं ऐतिहासिक स्थल है, जिनमें कोलवी एवं बिनायगा की विश्व प्रसिद्ध शैल गुफाएं (राक कट टेम्पल) है।
कायावर्णेश्वर तीर्थ क्यासरा पर समय समय पर कई धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न होते है, भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर दूर से हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन कर लाभान्वित होते हैं।